अंग्रेजों ने अफीम से कैसे बर्बाद किया भारत को
09 February, 2024
नमस्कार दोस्तों, सोचकर देखिए कि क्या कोई देश प्रॉफ़िट कमाने के लिए इस हद तक जा सकता है कि वो एक नहीं बल्कि दो दो देशों को पूरी तरह से बर्बाद कर दे? मैं बात कर रहा हूँ ब्रिटिश रूल की जिसने सिर्फ एक चीज का इस्तेमाल करके भारत और चीन दोनों देशों को बहुत नुकसान पहुंचाया ! वहीं इस नुकसान में अंग्रेजों को बहुत ज्यादा फायदा पहुंचाया, ये चीज थी
OPIUM
18th और 19th सेन्चरी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अफ़ीम को करेंसी की तरह इस्तेमाल किया, और ब्रिटेन को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाया वहीं इससे हमारे देश के किसान और चीन की आम जनता दोनों बर्बाद हो गए,
आज की इस विडिओ में हम ईस्ट इंडिया कंपनी के इसी पहलू के बारे में बात करेंगे जिस पर बहुत कम बात होती है, क्योंकि अपना इतिहास नहीं जानोगे तो खुद को कैसे पहचानोगे ?
देखिए इंडिया में opium 8th सेन्चरी से उगाया जा रहा था । अरब travellers इस क्रॉप को वेस्टर्न इंडिया में लेकर आए थे। 12th सेन्चरी तक ओपीअम इंडिया के कई हिस्सों में अच्छी खासी तादाद में उगाई जाने लगी थी, फिर सोलहवीं सदी तक बंगाल और बिहार के वेस्टर्न हिस्से ओपीअम के बड़े सेंटर बन गए थे, इस टाइम पर इस ट्रेड पर मुग़लों का कंट्रोल हुआ करता था, फिर एंट्री होती है डच कंपनी और ईस्ट इंडिया कंपनी की। वैसे तो ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में सत्रहवीं सदी की शुरुआत में ही आ गई थी, लेकिन वो अफ़ीम के बिजनेस में 1728 में घुसी , सबसे पहले ये कंपनी अफगानिस्तान और साउथ ईस्ट एशिया के देशों मे ही अफ़ीम बेचती थी, लेकिन सिचूऐशन तब बदलती है जब 1757 में कंपनी ने प्लासी की लड़ाई जीत ली ,
इस लड़ाई के बाद पूरा बंगाल अंग्रेजों के हाथ में आ गया, और अफ़ीम की खेती से लेकर अफ़ीम को बेचने का पूरा ट्रेड अंग्रेजों के कंट्रोल में आ गया, धीरे धीरे उन्होंने कई नियम लगाकर डच जैसी दूसरी kmpnies को यहाँ से निकाल दिया और खुद इस ट्रेड के मालिक बन गए ।
ये वो टाइम था जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत और चीन दोनों जगह पर ट्रेड करती थी, भारत से वो कॉटन, मसाले अफ़ीम और लग्जरी गुड्स खरीदती थी तो चीन से चाय, चीनी मिट्टी के बर्तन और रेशम खरीदते थे, तब ब्रिटेन में चीन की चाय की खूब डिमैन्ड थी, ये दीवानगी इस हद तक थी कि 18वीं सदी के आखिर तक ब्रिटेन चीन के शहर कैंटोन से 60 लाख पाउंड की चाय हर साल मंगाने लगा था.
लेकिन चीन में ब्रिटेन को काफी नुकसान हो रहा था।
क्योंकि पूरे चीन में सिर्फ canton शहर में ही विदेशियों को ट्रेड करने की आजादी थी । और ब्रिटेन से चाइनीज सिर्फ और सिर्फ चांदी के बदले ही ट्रेड करते थे, क्योंकि ब्रिटेन के पास कुछ भी ऐसा नहीं था जो चीन को बेचा जा सके ।
चीन के किंग क़ियान लोंग ने तो किंग जॉर्ज III को एक लेटर में ये तक कहा था कि चीन के पास सारी चीजें क्वालिटी वाली हैं और ब्रिटेन की बनी किसी भी चीज का चीन में कोई इन्टरिस्ट नहीं है,
इसी वजह से चांदी में ट्रेड करना ब्रिटेन की मजबूरी बन गई थी क्योंकि चाय की डिमैन्ड ब्रिटेन मे काफी थी, ब्रिटेन ने जो चांदी अमेरिका से लूटी थी वो यहाँ चाय खरीदने में खर्च हो रही थी, अठारहवीं सदी के आखिरी पचास सालों में ब्रिटेन ने चीन को 270 लाख पाउंड की कीमत के बराबर चांदी में पेमेंट किया । आगे चलकर चाय और महंगी होने लगी ऐसा लग रहा था कि कहीं चाय के चक्कर में खजाना न खाली हो जाए !
इसी टाइम पर भारत में बैठे ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगों को एक मौका दिखा, उन्होंने अफ़ीम को चीन में बेचने की सोची, अब वैसे तो चीन में अफ़ीम बैन थी, साल 1729 में लोगों में अफ़ीम की लत को देखते हुए किंग योंगझेंग ने इस पर बैन लगा दिया था, लेकिन अभी भी चीनियों में इसकी बुरी लत लगी हुई थी और अंग्रेज इसी चीज का फायदा उठाना चाहते थे ।
इसके लिए उन्होंने चीन में अफ़ीम को स्मगल करना शुरू किया, धीरे धीरे ये नंबर बढ़ता गया, साल 1836 आते आते ब्रिटेन ने अफ़ीम की 30 हजार पेटियाँ चीन पहुंचा दी थीं, ये पेटियाँ ब्रिटेन भारत से भेज रहा था।
यानि कि इस स्मगलिंग से उन्हें हर तरफ से फायदा हो रहा था,
एक तरफ बंगाल पर कब्जा होने की वजह से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का अफ़ीम पर पूरा कंट्रोल हो गया था, वो बेहद सस्ते दामों पर किसानों से poppy खरीद लेते थे, फिर इस अफीम को बिहार की factories में फ़िल्टर करके अफ़ीम बनाई जाती थी,
इसके बाद छोटी छोटी नावों के सहारे इसे चीन भेजा जाता था, इन्टरिस्टिंग पॉइंट ये है कि जिस canton city को विदेशी व्यापार के लिए खोला गया था वो समुद्र के किनारे था इसलिए स्मगलिंग भी आसान हो गई। इसके बाद चीन से स्मगलिंग से कमाए गए पैसों का इस्तेमाल करके चाय खरीदी जाती थी जिसे ब्रिटेन में बेचा जाता था । Thomas Manuel अपनी बुक opium ink में बताते हैं कि चीन में अफ़ीम की supply के लिए ब्रिटेन ने बंगाल और बिहार की पूरी खेती को अफ़ीम की खेती में बदल दिया था । अचानक से ब्रिटेन को लगने लगा था कि उसका खजाना अब कभी खाली नहीं होगा
क्योंकि जिस चीन में वो हर चीज खरीदने के लिए चांदी पर डिपेन्डन्ट थे, अब उस चीन में बेचने के लिए अब ब्रिटीशर्स के पास एक ऐसी चीज थी जिसे चीन के लोग किसी भी हालत में पाना चाहते थे । इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि 1801 में जो अफ़ीम चीन में सिर्फ 4500 पेटी बेची जाती थी वो 1840 आते आते चालीस हजार पेटी पहुँच चुकी थी। इस तरह से 19th सेन्चरी के पहले पचास सालों में ईस्ट इंडिया कंपनी दुनिया में सबसे ज्यादा अफ़ीम बेचने वाली कंपनी थी, और इसके लिए वो किसानों का जो शोषण कर रहे थे वो दुनिया के सामने आसानी से नहीं आ पाया क्योंकि अफ़ीम का ट्रेड बंगाल और बिहार के अलावा देश के कुछ ही हिस्सों में होता था। इसलिए आपको अफ़ीम का ये वाला aspect हो सकता है न पता हो ! लेकिन इसका नुकसान देश के किसानों को हो रहा था खास तौर पर बंगाल और बिहार में, क्योंकि उनकी खेती की ज़मीनों पर ऐसी चीज उग रही थी जिसे वो खा नहीं सकते थे, ऊपर से अफ़ीम इतने कम दामों मे खरीदी जाती थी कि उन पैसों से गुजारा मुश्किल था, जाहिर है कि इससे अफ़ीम के किसान बर्बाद हो गए। हाँ ईस्ट इंडिया कंपनी को इससे कोई लेना देना नहीं था ।
क्योंकि वो चीन में धड़ल्ले से अफ़ीम बेचने में बिजी थी,
लेकिन उसकी ये खुशी भी बहुत दिनों तक नहीं चली और 1839 से ही चीन के राजा ने अफ़ीम के खिलाफ जंग छेड़ दी, उन्होंने canton में छापा मरवाया और वहाँ से अफ़ीम की 20 हजार पेटियां और 40 हज़ार ओपियम पाइप्स जब्त की. अ ब्रिटिश सरकार ने भी तुरंत एक्शन लिया और जल्दी ही चीन और ब्रिटेन के बीच लड़ाई शुरू हो गई, इस लड़ाई में चीन हार गया। और फिर 1842 में नानकिंग की ट्रीटी साइन हुई जिसे दुनिया 'अनइक्वल ट्रीटी' या 'गैरबराबरी की संधि' के नाम से जानती है. इसमें चीन को पाँच बंदरगाह विदेशी व्यापार के लिए खोलने पड़े और अफ़ीम के ट्रेड में होने वाले नुकसान कि भरपाई के लिए साथ ही युद्ध के हर्जाने के तौर पर ब्रिटेन को दो करोड़ 10 लाख सिल्वर डॉलर देने पड़े, hongkong इसके बाद से चीन के हाथ से निकल कर ब्रिटेन के पास पास चला गया और जिस अफ़ीम को चीन बैन करने चला था वो अब पूरे चीन में खुलकर बेची जाने वाली थी ।
तो दोस्तों ये थी कहानी उस अफ़ीम की जिसने ब्रिटेन को बेहद अमीर बनाया जिसके दम पर वो पूरी दुनिया पर रूल कर सकते थे, जिसकी वजह से भारत के किसान और चीन की आम जनता बर्बाद हो गई,
anthropologist Nicholas Saunders अपनी किताब The Poppy: A Cultural History from Ancient Egypt to Flanders Fields to Afghanistan (2013).
में लिखते हैं कि अगर अफ़ीम का ये traingulr ट्रैड नहीं होता तो colonial history कुछ और होती । अब आप कमेंट करके बताइए कि आपको ये कहानी कैसी लगी !