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आज कहाँ है ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ?

07 February, 2024

आज कहाँ है ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ?

अंग्रेजों ने हमारे देश पर कुल 190 साल तक रूल किया, इसमें से 90 साल तक हमें ब्रिटिश Crown ने लूटा, लेकिन इसके अलावा जो बाकी के सौ साल थे उसमें एक कंपनी ने हमपर अपना हुकूम चलाया, सिर्फ एक कंपनी ने। अगर आप इंडिया की हिस्ट्री को थोड़ा सा भी जानते हैं तो अब तक आपने इस कंपनी का नाम गेस कर लिया होगा , जी हाँ !

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी। साल 1600 में बनी ईस्ट इंडिया कंपनी ही वो कंपनी है जिसकी बदौलत ब्रिटिश क्राउन ने इंडिया, म्यांमार, चीन, श्रीलंका और साउथ ईस्ट एशिया के कई देशों पर कब्जा कर लिया था, इस कंपनी के पास अपनी आर्मी थी, खुद के जहाज थे और ब्रिटिश crown का बेतहाशा सपोर्ट था, यही नहीं एक टाइम पर इसके पास ब्रिटेन की अपनी आर्मी से भी ज्यादा सेना थी और कई देशों के बराबर पैसा, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि इस कंपनी को बंद कर दिया गया, जिस कंपनी ने ब्रिटेन को वो कहावत दि कि ब्रिटेन का सूरज कभी अस्त नहीं होता उसी कंपनी को ब्रिटिश सरकार ने एकदम से बंद क्यों कर दिया ।

क्या आज भी ये कंपनी इग्ज़िस्ट करती है ? अगर हाँ तो ये करती क्या है? आज इसका मालिक कौन है ? आज की इस विडिओ में हम अपने देश को लूटने वाली इसी कंपनी के इतिहास को टटोलेंगे, क्योंकि अपना इतिहास नहीं जानोगे तो खुद को कैसे पहचानोगे ?

तो कहानी शुरू होती है साल 1579 से , फ्रांसिस ड्रेक नाम के एक traveller ने वो रास्ता ढूंढ निकाला जिससे इंडिया पहुंचा जा सकता था । ड्रेक ने स्पाइस islands को खोज लिया था। ये जगह इंडोनेशिया के नॉर्थ ईस्ट में पड़ती है, वो यहाँ से मसाले लेकर 1580 में ब्रिटेन आए और हीरो बन गए क्योंकि इस डील से उन्हें 5 हजार गुना फायदा हुआ था , इस फायदे को देखते हुए लंदन के ट्रेडर्स ने हिन्द महासागर में ट्रेड करने की पिटीशन मांगी !

आगे चलकर 1599 में ब्रिटेन के कई बड़े ट्रेडर्स ने मिलकर ब्रिटिश महारानी से 30 हजार यूरो pound के इनवेस्टमेंट के साथ एक कंपनी खोलने की सिफारिश की। कंपनी को बनाने का पर्पस था साउथ ईस्ट एशिया के देशों से ट्रेड करके मुनाफा कमाना,, इस तरह 31 दिसंबर साल 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी अस्तित्व में आई। अगले पंद्रह साल के लिए कंपनी को मोनोपॉली दे दी गई, यानि कि कंपनी से पर्मिशन लिए बिना ब्रिटेन का कोई भी ट्रेडर साउथ ईस्ट एशिया के देशों से ट्रेड नहीं कर पाएगा, इसके साथ ही कंपनी अपनी आर्मी भी रख सकती थी।

अपने शुरुआती सालों में कंपनी मोलुक्का स्टेट्स तक ही लिमिटेड थी और मसालों का ट्रेड करती थी , फिर 1608 में कैप्टन विलियम हॉकिंस भारत पहुंचे, इस टाइम पर जहांगीर मुग़ल गद्दी को संभाल रहे थे, वहीं डच और पुर्तगाली पहले से ही भारत से ट्रेड कर रहे थे।

अस वक्त मुग़ल काफी ताकतवर थे, उनके पास चालीस लाख की सेना थी, hawkins को एक बात समझ आ गया था कि मुग़लों की पर्मिशन और सपोर्ट के बिना वो भारत में कुछ नहीं कर सकता , अब जहांगीर ने तो hawkins पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन उनके शहजादे शाहजहां ने 1613 में सूरत में फैक्ट्री खोलने की इजाजत दे दी। इसके बाद अगले 50 साल में अंग्रेजों ने बंबई मद्रास और बंगाल में अपने कारखाने शुरू कर दिए । कंपनी के ट्रेडर्स भारत से कॉटन , नील, पोटैशियम नाइट्रेट और चाय ख़रीदते, फिर विदेशों में उन्हें महंगे दामों में बेचते और ख़ूब मुनाफ़ा कमाते. उस टाइम पर कंपनी जो भी चीज ख़रीदती थी उसकी पेमेंट चाँदी में करती थी। बदले में मुगलों को टैक्स देती थी।

ब्रिटेन और मुग़ल दोनों को इससे फायदा होरहा था। जहांगीर से लेकर शाहजहाँ के टाइम तक कोई दिक्कत नहीं हुई, पर 1690 के दौरान कंपनी को एक बड़ा सबक मिला, जब कंपनी औरंगज़ेब से भिड़ गई, एक बार तो इस वजह से कंपनी लगभग भारत से बाहर हो गई थी,

इस युद्ध को चाइल्ड युद्ध के नाम से जाना जाता है । औरंगजेब ने ये लड़ाई जीती और उसने बंगाल में मौजूद कंपनी के कारखानों को बंद करके सभी अंग्रेज़ों को बंगाल से बाहर निकाल दिया। यही हाल सूरत और बंबई में किया गया। हालांकि बाद में कंपनी को माफ कर दिया गया. लेकिन कंपनी ने इस घटना से सीखकर अपनी फैक्ट्रीज़ और भी ज्यादा बढ़ानी शुरू कर दी, अब कहने को तो ये फैक्ट्रीज़ थीं लेकिन इसमें असल में किले और छावनियाँ हुआ करती थीं, इन्हीं की बदौलत कंपनी आगे चलकर बड़ा उलटफेर करने वाली थीं।

आने वाली अठारहवीं सदी ईस्ट इंडिया कंपनी, और इंडिया दोनों के लिए काफी क्रूशल होने वाली थी, भारत में मुग़ल बादशाह औरंगजेब की मौत के बाद से मुग़ल सत्ता कमजोर पड़ रही थी, देश में बंगाल, मद्रास, निजाम और मराठे अपनी अपनी सत्ता चला रहे थे. आपस में लड़ाइयाँ भी जारी थीं, ईस्ट इंडिया कंपनी को इसी टाइम का इंतेजार था, जिस आर्मी को उसने अपनी फैक्ट्रीज़ में रखा था अब उनसे भी अंग्रेजों को फायदा होने वाला था,

धीरे-धीरे रियासतों के काम में दखल देना शुरू किया कभी किसी को किराए पर फौज दे दी तो कभी किसी को पैसा उधार दे दिया,

इस तरह ट्रेड करने वाली ये कंपनी इंडियन पॉलिटिकस का मेजर हिस्सा हो गई और यह सब रियासतों और भारतीय राजाओं की आपसी लड़ाई के कारण हुआ, इन सबका अंत तब हुआ जब कंपनी ने 1757 की पलासी की लड़ाई जीत ली।

धीरे धीरे कंपनी ने देश की बाकी रियासतों के साथ भी यही किया। कंपनी ने भारत में अपनी लूट मचानी शुरू की, ज्यादा से ज्यादा टैक्स लेना और भारत के समान को उसी टैक्स के पैसों से खरीदकर विदेश में बेचना उनके लिए खूब मुनाफे का सौदा था, इसके साथ ही जबरन नील और अफीम की खेती कराने से देश के कई हिस्सों को भुखमरी की हालत तक कंपनी ने पहुंचा दिया,इसी बीच में बंगाल और मद्रास में भयानक अकाल पड़े । 100 सालों के राज में 34 बार अकाल पड़े और इसमें भी राहत का काम करने की बजाय टैक्सेस को बढ़ाया गया और रियासतों पर कबजा करना जारी रखा गया .अंग्रेजों ने हमें कितना लूटा उसकी एक डीटेल विडिओ मैंने बनाई है, जिसे आप यहाँ क्लिक करके देख सकते हो,

फिर साल 1800 तक पंजाब को छोड़कर लगभग सारी रियासतों को उसने जीत लिया था, लेकिन कंपनीके खिलाफ इंग्लैंड में विरोध शुरू हो चुका था , फादर ऑफ ईकनामिक्स कहे जाने वाले एडम स्मिथ ने इसी टाइम पर फ्री ईकानमी की बात कही थी जिसका असर इंग्लैंड में हो रहा था । इसिलिए 1813 एक चार्टर लाकर कंपनी का एकाधिकार खत्म कर दिया गया, मतलब अब कोई भी ब्रिटिश कंपनी या नागरिक भारत में ट्रेड कर सकती थी ,

ये इस कंपनी के अंत की शुरुआत थी क्योंकि कंपनी को चैलेंज करने के लिए कई दावेदार खड़े होने लगे थे और इससे कंपनी के करप्शन का भी भंडाफोड़ हो रहा था ।

असल में कंपनी ने फायदा कमाने के लिए भारत में हर वो काम किया जिसकी वजह से लोग प्रताड़ित होते रहे, लेकिन इससे कंपनी को कोई फर्क नहीं पड़ा। देश का textile सेक्टर, handloom इंडस्ट्री सब बर्बाद हो गया क्योंकि जो कंपनी पहले ये सब सामान भारत से ले जाकर इंग्लैंड में बेचती थी वही कंपनी अब इंग्लैंड की फैक्ट्रीज़ में बना सस्ता सामान ले जाकर भारत में बेचने लगी थी, ये समान इतना सस्ता होता था कि भारत के लोग इसका मुकाबला नहीं कर पाए और बर्बाद होकर रह गए, गवर्नर-जनरल विलियम बैंटिक ने अपनी 1834 की रिपोर्ट में लिखा कि इतिहास में ऐसी विकट परिस्थिति का कोई और उदाहरण नहीं मिल सकता. भारतीय बुनकरों की हड्डियों से भारत की धरती सफ़ेद हो गई है.

कहते हैं कि पाप का घड़ा जब भर जाता है तो हर तरफ से आफत है। कंपनी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, इंग्लैंड में इसका विरोध हो ही रहा था, भारत में ब्रिटिश नीतियों से परेशान बंगाल रेजीमेंट के एक हिस्से ने 1857 में विद्रोह शुरू कर दिया जो कि धीरे धीरे नॉर्थ इंडिया के बड़े हिस्से में फैल गया, इस विद्रोह ने कंपनी की हालत पतली कर दी। लेकिन विद्रोह को दबाने के दौरान, कंपनी ने हज़ारों लोगों को बाज़ारों में और सड़कों पर लटकाकर मार डाला और बहुत से लोगों को कुचल डाला गया. यह colonial ब्रिटिश हिस्ट्री का सबसे बड़ा नरसंहार था. साल 1858 में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने कंपनी के अधिकारों को समाप्त कर शासन की बागडोर सीधे तौर पर अपने हाथों में ले ली.

कंपनी की सेना को ब्रिटिश आर्मी मे मिला दिया गया और नौसेना को खत्म कर दिया गया. आखिरकार 1874 में कंपनी को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया।

तो दोस्तों ये थी कहानी ईस्ट इंडिया कंपनी की जिसने भारत और चीन समेत दुनिया के कई देशों को जमकर लूटा, 2005 में इसी ईस्ट इंडिया कंपनी के टाइटल को संजीव मेहता ने खरीद लिया और अब ये कंपनी चाय, कॉफी, चॉकलेट, बिस्किट व लग्जरी गिफ्ट हैंपर तैयार करती है