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कैसे चाय की एक पार्टी ने अमेरिका में क्रांति करा दी ?

15 February, 2024

कैसे चाय की एक पार्टी ने अमेरिका में क्रांति करा दी ?

ये साल था 1773 और तरीख थी 16 दिसंबर, अमेरिका के बोस्टन शहर में कुछ विद्रोही लोगों का एक ग्रुप समुद्र के पास खड़े चाय ले जा रहे जहाजों पर चढ़ गए और उन जहाजों में रखे चाय की 342 पेटियों को बोस्टन हार्बर में फेंक दिया, ये अंग्रेजों के खिलाफ जंग का ऐलान था क्योंकि ब्रिटेन अमेरिका के लोगों से चाय जैसी चीज पर भी बेहद ज्यादा टैक्स लेने लगा था, धीरे धीरे ये विरोध अमेरिका के बाकी हिस्सों में भी पहुँच गया और फाइनली 1776 में ये विद्रोह अमेरिकी क्रांति में बदल गया !

बोस्टन में हुए इस इन्सिडन्ट को बोस्टन टी पार्टी कहा गया और इसे अमेरिकी क्रांति की शुरुआत माना जाता है,

लेकिन सवाल आता है दोस्तों कि आखिर ये नौबत आई ही क्यों? आखिर क्यों अमेरिका के लोगों को इंग्लैंड के अपने ही उन पूर्वजों से दिक्कत होने लगी थी जिन्होंने उनको अमेरिका में बसाया था? आइए आज जानते हैं अमेरिका की क्रांति का इतिहास। क्योंकि इतिहास को नहीं जानोगे तो खुद को कैसे पहचानोगे ?

तो बात है 1453 की जब भारत और साउथ ईस्ट एशिया के देशों तक जाने केलिए पुर्तगाल और स्पेन नए रास्ते ढूँढने शुरू कीये, इसी तलाश में पहली बार कोलंबस अमेरिका पहुँच गया, हालांकि वो इस जगह को इंडिया समझता रहा, लेकिन बाद में 1499 से 1503 के बीच अमेरीगो वेस्पुच्ची नाम के इटली के एक traveller ने इस जगह का मुआयना किया और उसे समझ आया कि ये ईस्ट काकोई देश नहीं बल्कि एक पूरा कॉन्टिनेट है जहां यूरोप का कोई भी आदमी पहुंचा ही नहीं था, फिर उनकी इस खोज की वजह से ही इस न्यू land का नाम अमेरिका पड़ा ।

अमेरिकन कॉन्टीनेंट काफी बड़ा और नैच्रल रिसोर्सेज से भरा हुआ था, इसलिए 17th सेन्चरी की शुरुआत में ही यूरोपियन पावर्स में यहां के रिसोर्सेस पर कब्जा करने की होड़ लग गई, स्पेन ने मेक्सिको में अपनी कालोनी बनाई तो पुर्तगीज ने ब्राज़ील में, फिर इंग्लैंड और फ्रांस ने आज के usa और कनाडा में अपनी कालोनी बना ली।

18th century में जब ब्रिटेन में industrialisation की शुरुआत हुई तो रॉ मटेरियल की बहुत जरूरत थी ऐसे में अमेरिका रॉ मटेरियल अवेलेबल कराने के लिए और अपने तैयार माल को बेचने के लिए सबसे सही जगह थी । इसलिए यूरोप के लोगों के लिए ये कॉन्टीनेंट किसी आपर्टूनिटी से कम नहीं था । इस दौरान साल 1732 तक ब्रिटेन ने नॉर्थ अमेरिका में 13 कॉलोनी एस्टेब्लिश कर ली थी।

अठारहवीं सदी आते आते फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल और ब्रिटेन की एक बड़ी आबादी अमेरिका की colonies में बस गई, इन colonies में भी आपस में बड़ी लड़ाईयां हुआ करती थीं। अब क्योंकि सभी देश फायदा कमाने की होड़ में लगे हुए थे इसलिए ये अपनी कॉलोनी को लेकर आपस में लड़ते भी रहते थे, और इन्हीं लड़ाइयों में से एक लड़ाई थी सेवन इयर्स वॉर, जिसने अमेरिकी क्रांति की नींव रख दी थी।

ये लड़ाई 1756 से 1765 तक चली। इस लड़ाई मे फ्रांस हार गया, फिर पैरिस एग्रीमेंट के अकॉर्डिंग सेंट लॉरेंस नदी के ईस्ट का मिसिसिप्पी का पूरा एरिया इंग्लैंड को देना पड़ा, ये ब्रिटेनकी 13 वीं कॉलोनी थी,

अब ब्रिटेन अमेरिका को सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहा था और इस चक्कर में उसे अपनी 13 colonies में रहने वाले अपने ही देशों के लोगों की कोई फिक्र नहीं थी। वो इन colonies से कच्चा माल इंग्लैंड में supply करता था, इसके बाद इस कच्चे माल को faictories में इस्तेमाल करके अपने यहाँ ज्यादा दामों मे नबेच देता, इससे अमेरिका के लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। क्योंकि अमेरिका में रह रहे यूरोप के लोगों पर अभी भी ब्रिटिश राज का सिक्का चल रहा था। लेकिन सेवन ईयर वार के बाद से अमेरिका में काफ़ी कुछ बदल गया,

हुआ ये कि इस लड़ाई ने ब्रिटेन की कमर तोड दी थी, उनको बहुत नुकसान हुआ था क्योंकि सात साल तक चली लड़ाई में ब्रिटेन ने काफी पैसा खर्च कर दिया था।

अंग्रेजी पॉलिटिशियन्स का मानना था कि इंग्लैंड ने कॉलोनी की सिक्योरिटी के लिए काफी ज्यादा खर्च किया है इसलिए अब कॉलोनी को और ज्यादा टैक्स देना चाहिए।

इसी सोच के चलते अमेरिकीयो पर कई टैक्स लगाए गए, इसके साथ ही जो टैक्स पहले से चालू थे उनको बढ़ा दिया गया और सख्ती से लागू किया गया, 1764 में शुगर ऐक्ट लागू हुआ, यानि कि कच्ची शक्कर पर टैक्स, इसके साथ ही stamp ऐक्ट भी लाया गया, इसमें सभी लीगल document और पेपर्स पर stamp लगाना कम्पलसरी कर दिया गया,

लेकिन कॉलोनी नए टैक्सेस देने को तैयार नहीं थी, इन कॉलोनी में जो लोग रहते थे वो भी अंग्रेजी नस्ल के थे लेकिन अब तक अमेरिकी माहौल में इन अंग्रेजों की छह पीढ़ियाँ बीत चुकी थीं, इनमें इंग्लैंड से ज्यादा अब अमेरिकी होने का भाव आ चुका था, वे अपनी कालोनी को खुद चलाना चाहते थे, और इंग्लैंड की दखलंदाज़ी को पसंद नहीं करते थे।

इधर इंग्लैंड ने टैक्स बढ़ाए और उधर अमेरिकियों ने विरोध शुरू कर दिया, अमेरिका भेजे गए स्टैंप नष्ट कर दिए गए कई अमेरिक शहरों में इस एक्ट के खिलाफ दंगे भड़क उठे । जगह जगह नारे लगने लगे नो टैक्सैशन विदाउट रिप्रेजेंटेशन , क्योंकि अमेरिकियों का कहना था कि ब्रिटेन में जब उनका कोई रेप्रिज़ेनटिव ही नहीं है तो वो टैक्स क्यों दें? इन घटनाओं से ब्रिटेन shocked था, उसे ये टैक्स वापस लेना पड़ा,

लेकिन अगले साल चाय,शीशा , कागज और ऑइल पर टैक्स लगा दिया गया, एक बार फिर से अमेरिका के लोगों ने इंग्लैंड के खिलाफ बगावत कर दी, ब्रिटेन ने सारे टैक्स वापस ले लिए लेकिन चाय पर टैक्स नहीं हटाया, इससे लोग और भी ज़्यादा गुस्सा थे , फिर साल 1773 में टी पॉलिसी बनाई गई जिसके हिसाब से ईस्ट इंडिया कंपनी को अमेरिका की ब्रिटिश कॉलोनी में शिप्स के थ्रू डायरेक्ट चाय भेजने की पर्मिशन मिल गई थी।

यानि कि अब कंपनी के जहाजों को इंग्लैंड के पोर्ट पर आने और टैक्स देने की जरूरत नहीं थी। इससे कंपनी को घाटा नहीं होता लेकिन अमेरिकियों पर टैक्स भी नहीं हटता, इसी बात का विरोध किया गया जो इतना बढ़ गया कि हिंसा में बदल गया । 5 मार्च 1770 को ब्रिटिश आर्मी और संस ऑफ लिबर्टी यानि वो लोग जो अमेरिका की आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे उनके बीच लड़ाई हो गई जिसमें ब्रिटिश सैनिकों की गोली से पांच सिटीजंस की मौत हो गई, अमेरिकी कॉलोनी ने इसे बोस्टन massacre कहा, इस घटना से ब्रिटेन के खिलाफ गुस्सा और बढ़ा, और इसका रिजल्ट निकला बोस्टन टी पार्टी में जिसके बारे में मैंने शुरुआत में बताया था,

बोस्टन टी पार्टी की घटना से ब्रिटिश सरकार बौखला गई। उसने फौरन पाँच कठोर कानून बनाए और बोस्टन का पोर्ट पूरी तरह बंद कर दिया, इसके साथ ही मैसाचुसेट्स कॉलोनी के सेल्फ रूल का राइट छीन लिया गया।

ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए इन कानूनों का अमेरिकी कॉलोनी में जमकर विरोध किया गया। फिर 5 सितंबर 1774 को फिलाडेल्फिया में पहली कॉन्टिनेंटल कांग्रेस का सेशन शुरू हुआ जिसमें जॉर्जिया को छोड़कर सभी कॉलोनी की असेंबली के रिप्रेजेंटेटिव थे।

इस कॉन्फ्रेंस में मांग की गई कि 1762 के बाद के सभी रूल्स को खत्म किया जाए और कॉलोनी में सेल्फ रूल बहाल किया जाए लेकिन इंग्लैंड के किंग जॉर्ज थर्ड ने अमेरिकी कॉलोनी के प्रपोजल को एक्सेप्ट करने से साफ इंकार कर दिया था उल्टे 30000 सोल्जर्स की आर्मी अमेरिका में विद्रोह के खिलाफ भेज दी, यहीं से अमेरिका और ब्रिटेन के बीच जंग स्टार्ट हो गई। जिसे हम अमेरिकन फ्रीडम मूवमेंट या अमेरिकन रेवलूशन के नाम से जाना जाता है।

19 अप्रैल 1775 को लेक्सिंगटन के वॉर से इस मूवमेंट की शुरुआत हुई। हालांकि इस लड़ाई में हार-जीत का फैसला नहीं हो सका, फिर फिलाडेल्फिया में 1776 में दूसरी कॉन्टिनेंटल कांग्रेस बुलाई जिसमें स्टेट्स को मिलाकर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका नाम दिया गया इसके बाद 4 जुलाई 1776 को सभी राज्यों के रिप्रेजेंटेटिव ने मिलकर अपने आप को ब्रिटेन से आजाद घोषित कर लिया।

इस पूरे प्रोसेस में अमेरिकियों की मदद फ्रांस कर रहा था, हथियार से लेकर पैसे तक, शुरुआत में अमेरिकियों को ब्रिटेन ने जबरदस्त धक्का दिया, लेकिन filadelphia की लड़ाई में उन्हें बड़ी जीत हासिल हुई थी। पहली बार ब्रिटिश आर्मी ने सरेन्डर किया।

इस घटना के बाद में अमेरिकियों की ताकत बहुत बढ़ती चली गई। फ्रांस और स्पेन ब्रिटेन से सेवन इयर्स वॉर की हार का बदला लेने का मौका तलाश रहे थे, उन्होंने बिना मांगे अमेरिकन आर्मी की हेल्प की फरवरी 1778 में फ्रांस ने अमेरिका की आजादी को मान्यता दे दी और यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका की आर्मी से ट्रीटी कर ली।

इससे ब्रिटेन और फ्रांस के बीच वॉर शुरू हो गया, फिर धीरे धीरे ब्रिटेन कमजोर पड़ने लगा क्योंकि उसका बाकी यूरोपीय देशों से झगड़ा शुरू हो गया। अब पूरा यूरोप या तो ब्रिटेन का दुश्मन था या फिर न्यूट्रल था, ये पूरी सिचुएशन अमेरिकी रेवोल्यूशन के हक में गई। लड़ाई सिर्फ अमेरिका तक लिमिटेड नहीं थी, स्पेन और फ्रांस ने वर्ल्ड के अलग-अलग एरियाज में इंग्लैंड के कब्जे वाले क्षेत्रों पर अटैक कर दिया। फ्रांस ने अपना जहाजी बेड़ा और अपनी सेना अमेरिका भेजी जिसने यूनाइटेड स्टेट्स की आर्मी के साथ ब्रिटिश सेनाओं से युद्ध किया अंत में अंग्रेजी आर्मी चीफ लॉर्ड कानवालिस ने 19 अक्टूबर 1781 को यार्क टाउन के युद्ध में सरेंडर कर दिया। इन हालात से परेशान होकर ब्रिटेन ने एक कमीशन भेजकर अमेरिका को ब्रिटिश रूल के अंदर फ्रीडम देने के प्रपोजल रखा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी अमेरिकियों ने इस पर ध्यान तक नहीं दिया, फिर भी इंग्लैंड ने हार नहीं मानी, आने वाले दो सालों तक युद्ध और चला और फिर इंग्लैंड ने पेरिस की ट्रीटी साइन करके 13 स्टेट्स वाले यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका को एक इंडिपेंडेंट कंट्री मान लिया इस तरह 3 सितंबर 1783 को अमेरिका आजाद हो गया ।