पाकिस्तान दो हिस्सों में कैसे टूटा ?
12 February, 2024

नमस्कार दोस्तों, 16 दिसंबर 1971 का दिन था जब पाकिस्तान के 91 हजार सोल्जर्स ने इंडिया के सामने सरेन्डर किया। इस जंग में भारत सिर्फ जीता नहीं था बल्कि बांग्लादेश नाम से एक नया देश एशिया के नक्शे पर एक उभरकर खड़ा हुआ था,, भारत की मदद से बांग्लादेश में मुजीबुर्रहमान की सरकार बनी और पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए। लेकिन सवाल ये है कि ऐसा क्या हुआ कि 1947 में अस्तित्व में आने वाला पाकिस्तान 25 साल के अंदर ही टूट गया ? बांग्लादेश के लोग पाकिस्तान से किन बातों को लेकर इतने नाराज हो गए कि उनके खिलाफ खड़े होकर भारत का साथ देने लगे ? आज इन्हीं सवालों के जवाब आपको इस विडिओ में मिलेंगे तो विडिओ को एंड तक जरुर देखिएगा ! क्योंकि अपना इतिहास नहीं जानोगे तो खुद को कैसे पहचानोगे ?
नमस्कार मेरा नाम है सिद्धार्थ सिंह और आप देख रहे हैं हिस्ट्री कनेक्ट !
15 अगस्त 1947 को जब भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान पहले से दो हिस्सों में बंटा हुआ था, एक वेस्ट पाकिस्तान यानि कि आज का पाकिस्तान और दूसरा ईस्ट पाकिस्तान यानि कि आज का बांग्लादेश ! इन दोनों के बीच में करीब 2000 किलोमीटर की दूरी थी और बीच में हिंदुस्तान पड़ता था जो कि उनका सबसे बड़ा दुश्मन था, लेकिन आगे चलकर बांग्लादेश बनेगा ये बात अंग्रेजों ने ही काफ़ी टाइम पहले तय कर दी थी, देखिए 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल को दो हिस्सों में बाँट दिया, इसमें ईस्ट बंगाल मुस्लिम मजॉरिटी था और हिन्दू मजॉरिटी बंगाल को वेस्ट बंगाल कहा गया, ये विभाजन क्यों हुआ इसपर detailed विडिओ मैंने बना रखी है इसे आप यहाँ लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं !
खैर, बाद में इस पार्टिशन को खत्म कर दिया गया लेकिन इसकी वजह से हिन्दू और मुस्लिम एकता पर असर पड़ा और ये चीज साफ तौर पर 1947 में दिखाई दी, जब ईस्ट बंगाल ने पाकिस्तान के साथ रहने का समर्थन किया। और यही हुआ भी देश आजाद हुआ और पूर्वी पाकिस्तान के लिए 2000 किलोमीटर दूर से वेस्ट पाकिस्तान अपनी policies बनाने लगा,
लेकिन वेस्ट पाकिस्तान की policies में ईस्ट पाकिस्तान को बहुत कम सपोर्ट मिलता था, और इसकी कई वजहें थीं, इसमें से एक बड़ी वजह थी ईस्ट बंगाल की भाषा,
असल में ईस्ट पाकिस्तान की 56% आबादी बांग्ला बोलती थी, वहीं पश्चिमी पाकिस्तान में बांग्ला जानने वाले लोग न के बराबर थे, इन लोगों का मानना था कि बांग्ला भाषा हिंदुओं की भाषा है। और मुसलमानों की भाषा है उर्दू ।
यही वजह है कि जब फ़रवरी 1948 में जब असेंबली के एक बंगाली सदस्य ने असेंबली में बंगाली और उर्दू के एक साथ इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा तो पीएम लियाकत अली खान ने सीधे सीधे कहा कि पाकिस्तान करोड़ों मुसलमानों की मांग पर बना है और मुसलमानों की भाषा उर्दू है. इसलिए पाकिस्तान की एक कॉमन भाषा केवल उर्दू ही हो सकती है. फिर अगले ही महीने मार्च 1948 में पाकिस्तान के कायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना ने ढाका में कहा कि पाकिस्तान की official लैंग्वेज केवल उर्दू होगी.
इस तरह से ईस्ट पाकिस्तान की मजॉरिटी जनता जो बंगाली बोलते थे उन पर उर्दू को थोप दिया गया, लेकिन लैंग्वेज इस भेदभाव की अकेली वजह नहीं थी बल्कि इसके अलावा दोनों जगहों का कल्चरल डिफरेंस का भी एक बड़ा रोल था।
कई हिस्टोरीयन्स ये मानते हैं कि वेस्ट पाकिस्तान ईस्ट पाकिस्तान के लोगों को कमजोर मानता था, यहाँ माना जाता था ईस्ट पाकिस्तान का कल्चर हिन्दू है और इस कल्चर को शुद्ध करने की जरुरत है, इसिलिए इन बांग्लादेश के लोगों के साथ इज्जत से पेश नहीं आया जाता था ।
ढाका यूनिवर्सिटी की पूर्व प्रोफ़ेसर मेघना गोहथाकर्ता इस बात से अग्री करती हैं। उनके हिसाब से ईस्ट पाकिस्तान के साथ बहुत ज्यादा भेदभाव होता था, लेकिन वो ये क्यों कह रही थीं उसे भी जरा समझ लेते हैं ।
देखिए, पाकिस्तान ने कभी भी ईस्ट पाकिस्तान के साथ जस्टिस नहीं किया, देश के रिसोर्सेज को सिर्फ इनसे छीना नहीं गया बल्कि जो हक इन्हें मिलना चाहिए था वो भी नहीं दिया गया । ईस्ट पाकिस्तान में पटसन की खूब खेती होती थी, और वेस्ट पाकिस्तान की सरकार पटसन की बिक्री पर काफ़ी टैक्स लगाती थी। इस टैक्स की कमाई का बड़ा हिस्सा देश के सिक्युरिटी बजट पर खर्च हो जाता था।
विलियम वॉन शिंडल अपनी किताब 'ए हिस्ट्री ऑफ़ बांग्लादेश में बताते हैं कि 1947 से 1970 तक पाकिस्तान अपनी विदेशी मुद्रा का दो तिहाई पटसन की बिक्री से कमा रहा था, लेकिन इस पैसे से ईस्ट पाकिस्तान को न के बराबर बजट मिलता था। ज्यादातर schemes को वेस्ट पाकिस्तान के लिए बनाया गया था, यानि कि ईस्ट पाकिस्तान के लोगों को उनके ही रिसोर्सेज से अलग किया जा रहा था,
जाहिर सी बात है कि इस तरह के भेदभाव की वजह से देश में विरोध के स्वर गूंजने लगे थे, इसी बीच 1965 में भारत और पकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया, और इस क्रूशल टाइम पर ईस्ट पाकिस्तान को अपने डिफेन्स के लिए सिर्फ एक डिवीजन सेना यानि कि 12 से 15 हजार सोल्जर्स और 15 फाइटर जेट्स के साथ अकेला छोड़ दिया गया था , यहाँ तक कि वेस्ट पाकिस्तान के साथ कनेक्शन बेहद कम था, इससे ईस्ट पाकिस्तान के लोगों के मन में ये आ गया कि वेस्ट पाकिस्तान उनके बारे में कुछ भी नहीं सोचता है,
इन सारी घटनाओ की वजह से ईस्ट पाकिस्तान की पार्टी अवामी लीग पोपुलर होने लगी, इस पार्टी के अध्यक्ष थे शेख मुजीबुर्रहमान, उन्होंने अगले ही साल 1966 में इस बारे में अपनी बात रखी। उन्होंने लाहौर में छह सूत्री अजेन्ड रखा जिसमें उन्होंने ईस्ट पाकिस्तान को और भी पॉवर्स देने की बात कही, साथ ही ये भी कहा कि पूर्वी पाकिस्तान की जनसंख्या 5 करोड़ है, इसलिए देश की रक्षा में भी उसका हिस्सा जनसंख्या के अनुपात में होना चाहिए लेकिन उनकी इस डिमैन्ड को खारिज कर दिया गया और ये आरोप लगाया गया कि मुजीब भारत से मिले हुए हैं और पाकिस्तान के खिलाफ काम कर रहे हैं ।
लेकिन मुजीब बांग्लादेश के साथ खड़े थे इसलिए यहाँ पर उनका सपोर्ट बढ़ता जा रहा था, इस बात से परेशान होकर साल 1968 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा मुजीब और उनकी पार्टी के खिलाफ अगरतला षडयन्त्र केस के तहत एक मुकदमा दर्ज कराया , इनके ऊपर देशद्रोह का आरोप लगाया गया। कहा गया कि मुजीब भारत सरकार के साथ मिलकर पूर्वी पाकिस्तान को तोड़ने की साज़िश कर रहे हैं
अयूब खान को लगा था कि इससे शेख़ मुजीबुर्रहमान की साख को नुकसान पहुंचेगा, लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा, इस मामले से न केवल पूर्वी पाकिस्तान में उनके समर्थन में आवाज़ बुलंद हुई, बल्कि वो ईस्ट पाकिस्तान के सबसे बड़े और पॉपुलर नेता बनकर उभरे, लोगों ने उन्हें 'बंग बंधु' यानी 'बंगाल के भाई या दोस्त' कहना शुरू कर दिया
फिर आया बांग्लादेश की पॉलिटिक्स का टर्निंग पॉइंट वाला साल, यानि कि 1970 जब यहाँ पर चुनाव हएउ , इस चुनाव में मुजीब की अवामी लीग पार्टी ने पूर्वी पाकिस्तान की 162 सीटों में से 160 सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन फिर भी उन्हें सरकार बनाने का मौक़ा नहीं दिया गया.
चुनाव खत्म होने के बाद ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो, शेख़ मुजीबुर्रहमान और राष्ट्रपति याह्या ख़ान की कई मीटिंग्स हुईं और आखिरकार राष्ट्रपति याह्या ख़ान ने ढाका में 3 मार्च को नई सरकार को विधानसभा बुलाने की तारीख़ दी.'' लेकिन बाद में उन्होंने इस डेट को इक्स्टेन्ड करके 25 मार्च कर दिया । शेख मुजीब को समझ आ गया था कि कुछ बड़ा होने वाला है इसलिए उन्होंने 7 मार्च को ये ऐलान किया कि ईस्ट पाकिस्तान के लोगों को किसी भी सिचूऐशन के लिए तैयार रहना होगा। पाकिस्तान के इस हिस्से में टेंशन का माहौल हो गया था,फिर वही हुआ जिसका डर था,
जब 25 मार्च का दिन आया तो ईस्ट पाकिस्तान में विधानसभा तो नहीं बुलाई गई लेकिन उसकी जगह पर आर्मी का ऑपरेशन सर्च लाइट शुरू कर दिया गया, इस ऑपरेशन में सेना ने खुलेआम वेस्ट पाकिस्तान के खिलाफ बोलने वाले लोगों और खासतौर पर हिंदुओं का कत्लेआम शुरू कर दिया, अप्रैल आते आते सिचूऐशन हाथ से निकल चुकी थी, बांग्लादेश के लोगों ने मुक्ति वाहिनी जॉइन करने लगे थे, ये वो रैडिकल ग्रुप था जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने की सोच ली थी ।
यही वो टाइम था जब भारत ये तय करता है कि वह बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई में उसका साथ देगा। हालांकि कई लोग आज भी ये मानते हैं कि भारत काफी पहले से इस मुहिम में शामिल हो गया था और 1970 के चुनाव में भारत ने ही मुजीब की मदद की थी चुनाव जीतने में । फिर भारत ने मुक्तिवाहिनी सेना के साथ मिलकर 1971 की जंग लड़ी, कहा जाता है कि मुक्तिवाहिनी को ट्रेनिंग देने का काम इंडियन आर्मी ने किया था, इधर पाकिस्तानी आर्मी का नरसंहार बढ़ता जा रहा था, बांग्लादेश क्लेम करता है कि पाकिस्तानी सेना ने कथित तौर पर 30 लाख लोग मारे थे. यही नहीं लाखों महिलाओं के साथ रेप किया गया और बच्चों तक को नहीं छोड़ा गया ।
फिर 1971 की 3 दिसंबर को भारत और पाकिस्तान के बीच जंग शुरू हुई और इस जंग का नतीजा बांग्लादेश की आजादी के रूप में निकला ! तो दोस्तों ये थी कहानी उन 24 सालों की जिसने पाकिस्तान को दो टुकड़ों में तोड दिया