मोदी हटाओ का नारा वैसा ही काम कर रहा है जैसे इंदिरा हटाओ नारे ने किया
08 February, 2024

विपक्ष की 28 पार्टियों के गठबंधन Indian National Developmental Inclusive Alliance ने जब जून 2023 से दिसंबर तक 4 मीटिंग की और बार बार अपना एजेंडा बताया तो वो जोरशोर से एक ही बात कह रहे थे कि हम देश में सेक्यूलरिज्म को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन ये वो था जो कि वो सामूहिक मंच से बोल रहे थे। लेकिन इस गठबंधन के नेताओं से अलग अलग बात करने पर एक ही बात आ रही है, हमें मोदी को हटाना है। मतलब इनका असली नारा है मोदी हटाओ।
देश में लगभग ऐसा ही माहौल 1971 में भी बना था। जब मार्च 1971 में देश की 5वीं लोकसभा के चुनाव होने वाले थे। कांग्रेस के पुराने नेताओं और सांसदों की पार्टी संगठन कांग्रेस या कांग्रेस ओ ने पीएम इंदिरा गांधी के खिलाफ एक गठबंधन बनाया। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय जन संघ, स्वतंत्र पार्टी समेत कई क्षेत्रीय पार्टियां इस गठबंधन में साथ आईं और इनकी स्ट्रैटेजी भी वही थी जो कि आज इंडिया एलायंस की है, हर constituency में एक संयुक्त कैंडिडेट खड़ा करो।
इन सभी को एक ही डर था कि कहीं इंदिरा गांधी प्रधान मंत्री बन कर वापस सत्ता में आ गईं तो उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए इन पार्टियों ने एक नारा निकाला इंदिरा हटाओ। इंदिरा गांधी ने इस के जवाब में नारा उछाला गरीबी हटाओ। जनता ने गरीबी वाले नारे का साथ दिया और इंदिरा गांधी ने 521 लोकसभा सीट में से 352 सीटें जीत लीं।
अब 2024 में विपक्ष 1971 वाला काम कर रहा है तो नरेन्द्र मोदी ने भी इंदिरा गांधी वाला ही कार्ड खेला है। जरा देखिए कि मोदी हटाओ के सामने पीएम मोदी क्या कर रहे हैं। अपने नाम की जगह इस चुनाव को देश के मुद्दे का चुनाव बना दिया है। वो बार बार देश की बात करते हैं, देश के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाते हैं, आर्थिक प्रगति की बात करते हुए बताते है कि देश दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, और विकसित भारत का नारा देते हैं। वो जनता को विश्वास दिलाने में लगे हैं कि देश को उसके स्वर्णिम दौर की तरफ ले जाने का काम उनकी सरकार ही कर सकती है।
लेकिन सवाल ये है कि जब 1971 में हटाने वाला निगेटिव नारा नहीं चला था तो विपक्ष को क्यो लगता है कि 2024 में एक निगेटिव एजेंडा चल जाएगा। हो सकता है कि विपक्ष को अभी तक ये समझ नहीं आया है कि वो किस विचारधारा को ले कर आगे चलें। अगर ये मान लें कि सेक्यूलरवाद ही उनका सबसे बड़ा मुद्दा है और इसीलिए पूरे विपक्ष ने राम मंदिर के उद्घाटन में जाने से मना किया था तो फिर अभी जब लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान हुआ तो कांग्रेस ने इसका स्वागत क्यों कर दिया। क्या कांग्रेस को नहीं पता कि अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने का सबसे बड़ा आंदोलन आडवाणी ने ही किया था। मंदिर वहीं बनाएंगे के नारे के साथ सोमनाथ से अयोध्या तक कि रथ यात्रा निकालने वाले नेता वही थे। सेक्यूलर के नाम पर यही एक चूक नहीं है, राम मंदिर उद्घाटन में ना जाने का फैसला करने में भी कांग्रेस ने दो हफ्ते लगा दिए थे।
क्षेत्रीय दल क्षेत्रीयता के नाम पर चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन इसके नाम पर चुनाव लड़ने में भी कांग्रेस को दिक्कत है, क्योंकि अगर उसने क्षेत्रीय दलों को ज्यादा महत्व दे दिया तो उसको अपना अस्तित्व ही खतरे में दिखने लगता है।
अब ऐसी हालत में विपक्ष की सारी राजनीति बिना विचारधार के चल रही है और इसीलिए जब भी उनको मौका मिलता है तो किसी भी छोटी बड़ी बात पर धरना प्रदर्शन करने लगते हैं। कभी पहलवानों और कुश्ती संघ को ले कर तो कभी महुआ मोइत्रा के मुद्दे पर। केन्द्रीय एजेंसियों जैसे ईडी, सीबीआई औऱौ इनकम टैक्स के गलत इस्तेमाल का मुद्दा भी ऐसा ही मुद्दा है जिसका जनता से की सीधा संबंध नहीं है, वो नेताओं से जुड़ा मामला है।
विपक्ष के पास कुछ ऐसा नहीं दिख रहा है जो कि उनको एक साथ जोड़ कर रख सके, शायद उनको लगता है कि सत्ता उनके लिए वो जोड़ साबित होगा जो उनको आपस में जोड़ कर रखेगा। लेकिन इसके लिए पहले सत्ता हाथ तो आनी चाहिए और उसके बाद हम सबको पता है कि निगेटिव एजेंदा वाले विपक्ष के जीत जाने पर भी क्या होता है। 19777 में जनता पार्टी के जीत कर सरकार बाने और फिर हट जाने का उदाहरण सामने है। और इन सबसे बड़ी बात ये है कि सत्ता में आने के लिए जरूरी है कि एक ऐसा मुद्दा जो जनता से जुड़ा हो। जो कि फिलहाल विपक्ष के पास नहीं है।
तो ये था हमारा आज का एनालिसिस। आपकी इस बारे में क्या राय हमें नीचे कमेंट कर के बताएं। चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है तो अभी कर लें औऱ अलर्ट का बटन भी दबा दें ताकि वीडियो सही समय पर आपके पास पहुंच सके। नमस्कार।