Congress ने इस तरह से तोड़ा India Alliance को
10 February, 2024

विपक्षी पार्टियों के गठबंधन इंडिया अलायंस की बात अब कोई नेता नहीं कर रहा है। इसकी आखिरी बैठक 13 जनवरी को हुई थी। उसके बाद से नीतीश कुमार और उनकी जनता दल यूनाइटेड अलग हो चुकी है, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने सीट एडजस्टमेंट से मना कर दिया औऱ उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी की लोकदल ने भी गठबंधन छोड़ दिया है।
इन तीनों घटनाओं को देखकर लगेगा कि रीजनल पार्टियां इस गठबंधन को छोड़कर जा रही है. लेकिन जरा गहराई से देखेंगे तो आपको साफ दिखेगा कि इन पार्टियों की वजह से कुछ नहीं हो रहा. इस गठबंधन के टूटने की सबसे बड़ी वजह है कांग्रेस. आपको यह भी दिखेगा कि कांग्रेस इस गठबंधन को लेकर शुरू से ही सीरियस नहीं थी.
देखिए इंडिया गठबंधन में पार्टयों के शामिल होने की सबसे बड़ी वजह थी भाजपा। इन सभी पार्टियों को यह डर था कि अगर भाजपा इसी तरह से चुनाव के बाद चुनाव जीतती रही तो उनका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा. लेकिन जब इन पार्टियों को यह लगने लगा कि भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी उनके अस्तित्व के लिए खतरा बन रही है तो गठबंधन के पार्टियों में बेचैनी बढ़ने लगी.
आज इसी को हम जरा विस्तार से समझेंगे. सबको पता है कि बीजेपी को मुकाबला करने के लिए देश के बड़े राज्यों में इस गठबंधन का सफल होना जरूरी है। अब कर्नाटक में औऱ तेलंगाना में कांग्रेस की खुद की सरकार है. राजस्थान, मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़. और आंध्र प्रदेश में इस गठबंधन का कोई दूसरा घटक या दल नहीं है. वहां पर कांग्रेस को ही सीधे ही बीजेपी से लड़ना है. ऐसे में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में इस गठबंधन का सफल होना जरूरी है. तो जरूरी था कि इन राज्यों में कांग्रेस अपने गठबंधन के साथियों के साथ मिलकर ऐसी रणनीति बनाए जिससे भाजपा से सीधा मुकाबला किया जा सके.
लेकिन जब राहुल गांधी ने एक तरफा तौर पर ओबीसी वोट या जातीय जनगणना और कास्ट सेंसस की बात करना शुरू किया, राहुल गांधी ने जब यह कहा कि देश में रिजर्वेशन के 50% की सीमा को वह हटा देंगे तो वह एक तरह से उसी वोट बैंक की बात करने लगे जिसके आधार पर बिहार में जनता दल यूनाइटेड या राष्ट्रीय जनता दल उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल जैसी पार्टियां चुनाव लड़ती हैं। नतीजा यह हुआ कि पहले नीतीश कुमार गठबंधन से बाहर हुए क्योंकि उनको लगा कि इस तरह से तो उनकी पार्टी बचेगी ही नहीं और इसके बाद राष्ट्रीय लोक दल ने भी नाता तोड़ लिया. समाजवादी पार्टी और RJD अभी तक तो गठबंधन में शामिल हैं क्योंकि उनको अपने यादव वोट पर भरोसा है लेकिन ऐसा नहीं है कि उनमें कांग्रेस को ले कर बेचैनी नहीं है।
दूसरी बात जो आप देखेंगे वो ये है कि यह गठबंधन ऐसी पार्टियों का था जिसमें ज्यादातर पार्टियां अपने-अपने क्षेत्रीय पहचान यानी आइडेंटिटी के आधार पर काम करती हैं। जैसे जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी, तमिलनाडु में डीएमके. लेकिन जब कांग्रेस ने एकतरफा तौर पर भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू की औऱ उन राज्यों की पार्टियों से कोई बात नहीं की जहां से यात्रा गुजरनी थी तो इन पार्टियों को पहला झटका लगा। लेकिन इससे बड़ी मुसीबत तब शुरू हुई जब कांग्रेस ने उत्तर पूर्व के राज्यों से गुजरते हुए एक बार भी ममता बनर्जी का नाम नहीं लिया, केवल राहुल गांधी को आगे रखा। अब इनमें से कुछ राज्यों में ममता बनर्जी की टीएमसी चुनाव लड़ती है और उसका बेस भी है। इससे ममता को समझ आ गया कि बंगाल में भी ऐसा ही होने वाला है, इसलिए बंगाल में आ कर कांग्रेस और राहुल ऐसा कुछ करें इससे पहले ही उन्होंने संबंध तोड़ने का फैसला कर लिया।
इसके बाद अब बच गए दो बड़े राज्य तमिलनाडु और महाराष्ट्र। अब तमिलनाडु में डीएमके को कांग्रेस की चिन्ता नहीं है उसकी बड़ी चिन्ता AIADMK और BJP हैं। इसलिए वहां पर ये गठबंधन अभी बना हुआ है। उधर, महाराष्ट्र में शिवसेना और NCP दोनों ही पार्टियां पहले ही टूट चुकी हैं और इन पार्टियों का जो बचा हुआ हिस्सा है वहीं इस गठबंधन में है। अभी उनको अपनी पार्टी को बचाने के लिए एक सहारे की जरूरत है इसलिए वो इंडिया अलायंस में बने हुए हैं लेकिन राज्य में उनका प्रभाव वैसे ही कम हो चुका है और ऐसे में वो वहां पर गठबंधन के लिए ज्यादा कुछ कर पाएंगे ये मुश्किल ही लगता है।
अब इन सबके बाद एक ही बड़ी पार्टी ऐसी बचती है जो कि इस गठबंधन को कुछ हद तक बचा सकती है, वो है आम आदमी पार्टी। वैसे आम आदमी पार्टी का प्रभाव पंजाब औऱ दिल्ली में ही अधिक है लेकिन गोवा और गुजरात जैसे राज्यों में भी वो वोट बंटने से बचा सकती है। लेकिन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों जानती हैं कि उनका वोट बैंक एक ही है। इसलिए दोनों एक दूसरे पर भरोसा नहीं करतीं। लेकिन इंडिया अलायंस की सफलता के लिए अगर कांग्रेस गंभीर होती तो वो किसी ना किसी तरीके से आम आदमी पार्टी को खुश रखने की कोशिश करती। लेकिन दिल्ली में सीटों के बंटवारे को ले कर जिस तरह से बात अटकी पड़ी है उससे साफ है कि कांग्रेस इस बातचीत को ले कर सीरीयस नहीं है। क्योंकि वो पहले दिन से ही आम आदमी पार्टी के साथ काम करने को ले कर उत्साहित नहीं थी।
तो ये था हमारा आज का वीडियो। आपकी इस बारे में क्य राय है हमें नीचे कमेंट बाक्स में लिख कर बताएं। अगर हमारा वीडियो अच्छा लगा हो तो इसे और लोगों से शेयर भी कर लें। अगर चैनल सब्सक्राइब नहीं किया है तो जल्दी से कर लें। मिलते हैं कल एक और नए वीडियो के साथ। नमस्कार।