L K Advani को भारत रत्न देना बताता है BJP की जीत और Congress की हार क्यों होती है
07 February, 2024
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीर से कई शिकार करते हैं. लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देकर नरेंद्र मोदी ने. एक साथ कई निशाने साधे हैं। यह भी सुना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आडवाणी जी को ये सम्मान दे कर हिंदुत्व के जोड़ को और पक्का कर दिया है. कुछ लोग आपको यह भी कहते मिल जाएंगे कुछ ही दिनों के भीतर कर्पूरी ठाकुर को और लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देकर नरेंद्र मोदी ने मंडल और कमंडल दोनों को एक साथ साधने की कोशिश की है।
लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी राजनीति की तारीफों के बीच एक बात ऐसी है जिस पर किसी की नजर नहीं जा रही है, जबकि यही बात ऐसी है जो प्रधानमंत्री के विरोधियों को जरूर समझनी चाहिए. यही वो बात है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी, भारतीय जनता पार्टी यानी कि बीजेपी, और देश की तमाम दूसरी पॉलिटिकल पार्टियों के बीच का सबसे बड़ा अंतर है. यही वो वजह है जिससे सारे अंदरूनी झगड़ों के बावजूद भाजपा चुनाव जीत जाती है जबकि इसी वजह से कांग्रेस या दूसरी कोई पार्टी चुनाव हार जाती है.
लेकिन आखिर यह वजह है क्या.
देखिए हम सब जानते हैं कि 2013 में जब भारतीय जनता पार्टी ने, नरेंद्र मोदी को, प्रधानमंत्री पद के लिए, उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया था, तो उसका विरोध करने वालों में, लाल कृष्ण आडवाणी और उनके साथ के कुछ लोग, सबसे आगे थे. और इस वजह से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लाल कृष्ण आडवाणी के बीच के संबंध वैसे नहीं रह गए थे जैसे पहले हुआ करते थे. इसके बाद आया 2014 का चुनाव, नरेंद्र मोदी चुनाव जीत गए, प्रधानमंत्री बन गए, बीजेपी में कई बदलाव हुए, लाल कृष्ण आडवाणी और उनके जैसे नेताओं को एक तरह से रिटायर करके मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा बना दिया गया. लेकिन इसके बावजूद, दोनों ही तरफ से कभी भी ऐसी कोई बात नहीं की गई, ना ऐसा कोई बयान, ना ही कोई ऐसी हरकत, जिससे यह पता चले कि दोनों के बीच में संबंध अच्छे नहीं हैं. हर साल हाल कृष्ण आडवाणी के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री मोदी खुद उनके घर जाते हैं उनको शुभकामनाएं देते हैं और उनका आशीर्वाद लेकर वापस आते हैं. लालकृष्ण आडवाणी ने भी कभी कोई पब्लिक पर बयान ऐसा नहीं दिया ना ही कोई ऐसी चीज दिखाएं जिससे लगे कि वह नरेंद्र मोदी से नाराज हैं.
अभी राम मंदिर का उद्घाटन हुआ पहले लालकृष्ण आडवाणी को निमंत्रण ना दी जाने की बात उठी लेकिन फिर उनको निमंत्रण दिया गया जिसको उन्होंने स्वीकार भी कर लिया लेकिन अंत मौके पर वह नहीं आए लेकिन उसके बावजूद उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए बहुत बड़ा खुशी का दिन है और सबसे बड़ी बात यह है कि राम ने खुद नरेंद्र मोदी को इस उद्घाटन के लिए चुना है यानी वो ये कह रहे थे कि वास्तव में नरेंद्र मोदी ही इस काम को करने के हकदार हैं जबकि सब जानते हैं कि सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा और मंदिर वहीं बनाएंगे का नारा आडवाणी ने ही दिया था.
अब आप इसे हिन्दुत्व को जोड़ कहें या RSS और संघ परिवार की ट्रेनिंग या संस्कार लेकिन आप हमेशा देखेंगे अपनी प्राइवेट फीलींग या भवना को आमतौर पर इस पार्टी के लोग पब्लिक में नहीं बोलते हैं।
अभी आपने देखा ही होगा कि भाजपा ने तीन राज्यों के मुख्यमंत्री पद पर ऐसे लोगों को बिठा दिया जिनके बारे में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। तीन पुराने नेताओं रमन सिंह छत्तीसगढ़ में, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह और राजस्थान में वसुंधरा राजे की जगह नए मुख्यमंत्री को पद पर बैठा दिया गया. इन सबकी नाराजगी की खबरें आती हैं लेकिन आप उनको कभी भी किसी पब्लिक फोरम पर इस बात को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए नहीं देखेंगे. यही नहीं आप जरा दक्षिण में, कर्नाटक में, देखिए वहां भी आपको बी एस येदियुरप्पा जो कि वहां के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक हैं और पूर्व मुख्यमंत्री भी रहे हैं। उनको पार्टी ने हटाया, वो पार्टी छोड़कर भी गए उसके बावजूद कभी भी खुलेआम पब्लिक में कोई ऐसी बात नहीं हुई जिससे किसी की इज्जत पर आंच आए.
और चाहे येदियुरप्पा हों या रमन सिंह या शिवराज सिंह चौहान सभी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पुराना नाता रहा है
देखिए कहीं भी कोई संगठन हो, लोगों का कोई एक समूह हो तो उसमें अलग-अलग विचार होते हैं, तो तनातनी या एक दूसरे से मतभेद हो ही जाते हैं. लेकिन बीजेपी और संघ परिवार की सबसे बड़ी खासियत यही है कि किसी भी मतभेद को वह आमतौर पर पब्लिक के बीच में यानी जनता के बीच में सामने आने नहीं देते हैं. अगर लोगों को इस मतभेद पता भी चल जाए लोगों को तो एक दूसरे को काम से कम जनता के सामने खुल कर उस पर बात नहीं की जाती। इसकी एक वजह तो ये है कि संघ में ये माना जाता है कि भारत पर विदेशियों का राज ही इसीलिए हुआ क्योंकि हम एक साथ मिलजुल कर नहीं रहे। आपसी मतभेद का फायदा मुस्लिम से ले कर अंग्रेजों और पुर्तगालियों तक को उठाने दिया। अब इसे ट्रेनिंग का हिस्सा कहें , विचारधारा कहें या संस्कार कहें ये बीजेपी के काम आती है।
आप जरा देखिए बीजेपी से नाराज नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है. वह चाहे उमा भारती हूं या लालकृष्ण आडवाणी हूं तमाम ऐसे नेता हैं जो मौजूदा वहां हाल में अपने आप को अलग-अलग पाते हैं. लेकिन आपको उनमें से कोई भी जनता के बीच कुछ ऐसा बोलना नहीं दिखेगा जो की पार्टी को या किसी दूसरे नेता को नुकसान पहुंचाने वाला हो. बोलते हुए कौन मिलेगा यशवंत सिन्हा मिलेंगे, शत्रुघ्न सिन्हा मिलेंगे या ऐसे लोग जो कि सीधे-सीधे संगठन से, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या संघ परिवार से नहीं आते हैं.
अब जरा दूसरी तरफ कांग्रेस को देखिए अभी-अभी आपने देखा होगा कि राहुल गांधी ने कहा कि बहुत अच्छा हुआ कि हेमंत बिस्वा सरमा या मिलिंद देवड़ा जैसे लोग पार्टी छोड़कर चले गए तो अच्छा हुआ क्योंकि ऐसे लोगों को पार्टी में वह रखना ही नहीं चाहते थे. यही नहीं, अगर आप देखेंगे तो एक समय था जब सोनिया गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के बीच में संबंध खराब हुए थे और उसका नतीजा यह था कि आज तक पार्टी में किसी भी चीज में पीवी नरसिम्हा राव का नाम तक नहीं लिया जाता. उनकी मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शरीर को पार्टी मुख्यालय में रखने तक की जगह नहीं दी गई। पार्टी के एक अध्यक्ष सीताराम केसरी को वर्किंग कमेटी की बैटक से इस तरह से बाहर किया गया कि उनकी धोती खुलते खुलते बची।
इसी तरीके से जब शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी होने के मुद्दे पर पार्टी छोड़ी तो उनके साथ क्या व्यवहार किया गया। वह जग जाहिर है. ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ कांग्रेस की बात है आप देखिए आपको करीब करीब सभी पार्टियों में ऐसा ही दिखेगा।
तो ये था हमारा आज का एनालिसिस। आपको वीडियो कैसा लगा। आपकी इस बारे में क्या राय है, या आप कोई सवाल पूछना चाहते हैं, हमें कमेंट बाक्स में लिखें। अगर चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है तो कर लें और एलर्ट का बटन भी दबा दें ताकि हमारा वीडियो सही समय पर आप तक पहुंच सके। नमस्कार।।।