Why Mayawati needed to reinvent to be relevant
14 February, 2024
देश की राजनीति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा भी एक और एम फैक्टर है। जी हां हम बात कर रहे हैं मायावती यानी बहन जी की।
पिछले दस सालों से एक तरह का वनवास काट रही मायावती अब वापसी का रास्ता ढुंढ रही हैं। उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के एक बड़े हिस्से में दलितों की सबसे बड़ी नेता मायावती की एक नहीं तीन तीन बड़ी मुश्किलों से लड़ रही हैं और इसके बीच में उन्हें अपने लिए नया रास्ता निकालना है।
तो कैंन सी हैं वो 3 दिक्कतें और क्या वो इनसे लड़ कर वापस अपनी जगह बना पाएंगी। आज के वीडियो में हम इसी पर बात करने वाले हैं। तो इस वीडियो को अंत तक जरूर देखिएगा ताकि आपको मायावती, दलित राजनीति और उत्तर प्रदेश की राजनीतिक तस्वीर पूरी तरह से समझ आ सके।
1995 में देश के किसी भी राज्य में पहली दलित मुख्य मंत्री मायावती का जलवा 2007 तक इतना ज्यादा बढ़ चुका था कि लोग उन्हें देश के भावी प्रधानमंत्री के तौर पर देखने लगे थे। उन्हंने दलित, के साथ मुस्लिम और यहां तक कि ब्राह्म्ण तक का ऐसा कम्बीनेशन बना लिया था कि 2007 के यूपी इलेक्शन में वो 200 सीटें ला कर पूर्ण बहुमत के साथ मुख्य मंत्री बन गईं। लेकिन इसके बाद से वो लगातार नीचे जाती रही हैं। उनकी पार्टी का प्रदर्शन कमजोर दिखा है।
तो हुआ क्याय़ देखिए सबसे बड़ी बात ये हुई कि यूपी के दलित वोट पर उनकी पकड़ कम हुई है। राज्य में कुल 20 परसेंट दलित वोटर हैं और सब उनके कब्जे में थे, यहां तक इसी वजह से एक समय देश के 8 परसेंट वोट मायावती को मिले थे। लेकिन अब इस दलित वोटर का 40 परसेंट ही उनके साथ मजबूती से खड़ा है। और ये है मायावती का जाटव वोटर। लेकिन बाकी में से ज्यादातर बीजेपी के साथ हो लिए हैं। और यही है मायावती की समस्या नंबर वन। इसी समस्या की वजह से वो 2009 में 20 सीट पाने वाली बहुजन समाज पार्टी को 2014 में एक भी सीट नहीं मिली।
2019 में उन्होंने समाजवादी पार्टी से समझौता किया तो उनको 10 सीटें मिल गईं। लेकिन इसकी वजह ये थी कि उनकी अपने वोट के साथ साथ उनको समाजवादी पार्टी के भी कुछ वोट मिल गए। लेकिन दिक्कत ये हुई कि समाजवादी पार्टी को सिर्फ 5 सीटें हीं मिलीं। और कहा ये गया कि समाजवादी पार्टी ने तो अपने वोटर से मायावती को वोट दिला दिए लेकिन मायावती की बीएसपी के वोटरों ने समाजवादी पार्टी को वोट नहीं दिया। और यही है मायावती की समस्या नंबर दो। एक समय अपने वोटरों पर पूरा कंट्रोल रखने वाली बहन जी के बारे में अब कहा जा रहा है कि वो अब अपने वोट ट्रांसफर नहीं करा पा रही है। अब उनमें वो पावर नहीं रही कि वो जिसे चाहें वोट दिला दें।
लेकिन जैसा हमने पहले कहा कि यूपी का जाटव वोटर आज भी बहन जी के कहने पर ही चलता है और यूपी में इस वोटर की संख्या 8 से 10 परसेंट तक है। हालांकि बीएसपी का कहना है कि उसके पास 13 परसेंट से भी अधिक वोट हैं। अब जहां 40 परसेंट वोट पर सरकार बन जाती हो वहां 10 परसेंट या उससे अधिक वोट वाली पार्टी का महत्व तो है लेकिन सवाल इसमें और वोटरों को जोड़ने का है। औऔर यहीं पर आ रही है मायावती की तीसरी मुश्किल।
बीजेपी से वो जुड़ नहीं सकतीं, क्योंकि बीजेपी अभी यूपी में सबसे ताकतवर स्थिति में है और उसको किसी बड़ी पार्टी की जरूरत नहीं है। समाजवादी पार्टी के साथ मायावती का इतिहास अच्छा नहीं रहा है। हर बार ये गठबंधन टूटा है। कांग्रेस के पास राज्य में काडर नहीं बचा है और उससे भी बड़ी बात कि दानिश अली समेत कुछ विधायकों को तोड़ने के लिए बीएसपी कांग्रेस से नाराज है।
शायद इसी को समझते हुए मायावती ने किसी भी पार्टी से चुनाव के पहले गठबंधन ना करने का फैसला किया है। वो कह चुकी हैं कि कोई समझौता करना होगा तो चुनाव के बाद होगा।
इसका मतलब ये है कि वो चुनाव में अपने बल पर जाना और अपनी ताकत दिखाना चाहती हैं। जाटव वोट के अलावा उनको भरोसा है कि मुसलमान जिस भी सीट पर उनकी पार्टी को जीतता देखेगा वो बीजेपी के खिलाफ बीएसपी को वोट देगा। यही नहीं वो ब्राह्मण वाले अपने पुराने प्रयोग जैसे कुछ नए कदम भी उठा सकती हैं।
मायावती को ये भी पता है कि युवा दलित वोटर में उनकी अपील कम हुई है और बहुत सारे युवा बीजेपी से जुड़ रहे हैं। अपने भाई के लड़के आकाश आनंद को पार्टी में अपना उत्तराधिकारी बनाना इसी वोटर को आकर्षित करने की कोशिश माना जा रहा है। पार्टी ने ऐलान कर दिया है कि वो यूपी की 80 में से 65 सीट पर अकेले चुनाव लड़ेगी।
अब राम मंदिर बनने के बाद यूपी में बीजेपी को जिस आंधी की उम्मीद है उसमें बीएसपी और बहनजी क्या करेंगी ये देखने वाली बात होगी। और इसी से तय होगा 68 साल की मायावती का आगे का करियर।
तो ये था हमारा ऐआज का एनालिसिस। आपको कैसा लगा ये वीडियो, हमें कमेंट कर के बताएं। और इस चैनल को अगर अभी तक सब्सक्राइब नहीं किया है तो जरूर कर लें। साथ ही, इसको ज्यादा से ज्यादा लोगों से शेयर भी करें ताकि राजनीति पर एनालिसिस और लोगों को भी मिल सके।
नमस्कार।।